Saturday, June 12, 2010

जीवन से अनुरक्ति

चाहतों ,हसरतों,इच्छाओं ओर सपनों का कारवः चलता ही जाता हैं | उसके धुन में हम थिरकते ही जाते हुएँ |दिल के हर झरोखे में दिल ही रह जाता हैं | सपनों के बिना तो जीवन हिः नीरस,बिना दिशा के उड़ता हुआ हवाई जहाज मनो|पर मोल है जिनका इतना वो ही जीवन के समस्त दुखों का स्त्रोत भी | परिस्थिति में विरोधाभास ओर यह ही जीवन कि विडम्बना | हर एक पल ,हर एक क्षण स्थिति के दो रूप होना अवश्यम्भावी है |सच या सही गलत सोचने के मायने भी मष्तिष्क के सोचने या तार्किक शक्ति के वशीभूत हैं |मन के तरंगों में हर क्षण कोई रागिनी स्थापित करने कि शक्ति किसी भाव कि है ,तो उस चित्त के लिए उस क्षण वाही सबसे सही ,सर्वोपरि ओर साक्षात सत्य है|जिस जिस क्षण हमें विस्मृत हो जाता है सब कुछ ओर रहा जाती है बस एक अवर्णनीय अनुभूति ,उस -उस क्षण के लिए व्याकुल है ये दिल | लेकिन इस व्याकुलता में भी कोई व्यथा नहीं बस जीवन जीने का आदर्श मात्र ही | सुख उस क्षण मात्र का जिसने रहा के एक स्तम्भ कोप देखा ,लेकिन उस क्षण को परिमित करना असंभव क्योंकि वह अतुल्य है | बड़ी नीरस हो जाती है , जटिल हो जाती है वह स्थिति जहाँ जड़ता का आभास आने लगता है |इसीलिए तो बड़ा आनंद जभ्रमण में ,जो कि निरुद्येश्य क्योंकि भ्रमण मात्र ही उसक उद्येश्य | हर उस सुक्ष्म वास्तु या भाव का रूप अनमोल जो प्रेरणा कि अतीव छोटी स्त्रोत बनाने में हो सक्षम | समझता ,न समझता , लेकिन एहसास हो ही जाता कि भाव ही मात्र है ओर उन सबका एक ही मोल ;मोल अनुभव का | अनुभवों का छत्रं शब्दों से दुरूह ,पर अनुभवों के स्वरों को स्वयं के अनुभवों से पहचानना सदैव आसन | समय कि न कोई सीमा हो क्योंकि जब वह सिमित हों तब हम ही सीमाओं का उल्लंघन करने में समर्थ हो | आतुर यहाँ मन पर कोई चाह नहीं ,हर विरोधाभास कि बस एक नै रह ही ,बस एक नै रह ही......

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